13 साल बाद बिलासपुर में फांसी की सजा, तीन माह में चालान पेश, सात माह में आया फैसला
राज्य ब्यूरो मोहम्मद आसिफ खान संपादक बीरेंद्र कुमार चौधरी
अधिवक्ता जिसने पैरवी कर आरोपी को फांसी सजा दिलान में भूमिका निभाई
बिलासपुर। अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद तीनों बच्चों को मौत की नींद सुलाने वाले युवक को दशम सत्र न्यायाधीश ने जान निकलने तक फंदे पर लटकाने की सजा सुनाई है। बिलासपुर जिले में 13 साल बाद किसी व्यक्ति को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है। इससे पहले वर्ष 2011 में रतनपुर निवासी व्यक्ति को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी। इस मामले में पुलिस और अदालत की तत्परता भी सामने आई है, जिसके चलते इस बड़े और बहुचर्चित मामले में अभियुक्त को उसके किए की सजा मिलने जा रही है। घटना व आरोपित की गिरफ्तारी के तीन माह के भीतर ही पुलिस ने चालान पेश कर दिया था। वहीं सात माह बाद ही जज ने अपना फैसला सुनाया है।
मामले में न्यायालय ने 10 हजार रुपये का अर्थदंड और इसे नहीं पटाने पर तीन माह कारावास की सजा का भी आदेश दिया है। आरोपित उमेंद्र केंवट को फांसी के फंदे तक पहुंचाने में शासन की ओर से पैरवी करने वाले अतिरिक्त लोक अभियोजक लक्ष्मीकांत तिवारी और अतिरिक्त लोक अभियोजक अभिजीत तिवारी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। वीहं पुलिस की जांच में कई और तथ्य भी सामने आए। इसके अनुसार पत्नी व तीनों बच्चो की हत्या करने के बाद उमेंद्र ने भी आत्महत्या की कोशिश की थी। वह रस्सी का फंदा बनाकर झूल गया था, लेकिन रस्सी टूटने से वह आत्महत्या करने में असफल रहा। फिर दोबारा फांसी लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। इसके बाद उसने खुद मस्तूरी थाने पहुंचकर सरेंडर करते हुए अपनी पत्नी व तीनों बच्चों की हत्या की सूचना दी थी।
याचिका मार्च के अंत में चालान
एक जनवरी की रात को पत्नी व बच्चों की हत्या करने के बाद आरोपित उमेंद्र केंवट दो जनवरी को मस्तूरी थाने पहुंचा था। सूचना मिलने के बाद मस्तूरी पुलिस मौके पर पहुंची व शव का पंचनामा करने के बाद पोस्टमार्टम कराया। इसके बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की। आरोपित के अलावा उसके स्वजन समेत अन्य का बयान दर्ज किया। कई तरह के साक्ष्य जुटाए गए और अंतत: मार्च के आखिर में अदालत में चालान पेश कर दिया।
बयान व साक्ष्य संकलन के आधार पर सजा
सुक्रिता व तीन बच्चों की हत्या के मामले में दशम अपर सत्र न्यायाधीश अविनाश के. त्रिपाठी की अदालत में चार माह तक सुनवाई हुई। जिरह के दौरान न्यायालय में रिश्तेदारों, पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक, वीडियोग्राफर व विवेचना अधिकारी का बयान दर्ज किया गया। पुलिस द्वारा पेश साक्ष्य व गवाहों के बयान के आधार पर न्यायाधीश ने उमेंद्र को सजा-ए-मौत व 10 हजार अर्थदंड की सजा सुनाई।
2011 में रतनपुर निवासी को सुनाई गई थी फांसी की सजा
रतनपुर में फरवरी 2011 में मनोज सूर्यवंशी ने पड़ोसी के तीन बच्चों की हत्या कर शव को खेत में फेंक दिया था। हत्या की जांच के दौरान पाया कि आरोपित मनोज की पत्नी सुमिरत बाई अपने पडोसी शिवलाल धीवर के छोटे भाई के साथ भाग गई थी। इससे मनोज सूर्यवंशी शिवलाल से दुश्मनी रखने लगा। उसने फरवरी 2011 में दर्रीपारा स्थित स्वामी विवेकानंद स्कूल से लौट रहे शिवलाल के तीनों बच्चों विजय धीवर (आठ वर्ष), अजय धीवर (छह वर्ष) व साक्षी धीवर (चार वर्ष) की हत्या कर दी। हालांकि फांसी की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया था।
टीआइ की जांच पर यह दूसरी फांसी की सजा
तत्कालीन थाना प्रभारी रविन्द्र कुमार अनंत ने बताया कि उनकी जांच में दूसरी बार किसी आरोपित को फांसी की सजा सुनाई गई है। इससे पहले वर्ष 2022 में जांजगीर में एक बच्चे की हत्या हुई थी। जांच के दौरान साक्ष्य संकलन के आधार पर आरोपित को फांसी की सजा सुनाई गई थी।