दुर्ग कवर्धा गर्म..फिर चुनाव फिर ‘धर्म’! क्या 2024 के चुनाव से पहले जबरन भावनात्मक माहौल बनाया जा रहा?
राज्य ब्यूरो मोहम्मद आसिफ खान संपादक बीरेंद्र कुमार चौधरी
रायपुर: 2024 चुनाव में क्या एक बार फिर से ध्रुवीकरण असरदार साबित होगा। प्रदेश में हाल के दिनों में कुछ घटनाओँ पर खुलते मोर्चों, विरोध और प्रदर्शन की तस्वीरों से अहम सवाल उठ रहे हैं। क्या वादे और गारंटी की बातों से इतर धर्म, पंथ और वाद जैसे भावनात्मक मुद्दों पर महौल बनाकर, चुनावी लाभ लेने की मंशा है। ये सवाल कैसे और क्यों उठा?
2024 लोकसभा चुनाव से ऐन पहलेविरोध-प्रदर्शन, बंद और नारेबाजी की इन तस्वीरों में साफ है कि आने वाले वक्त में इन घटनाओं से राजनैतिक माहौल गर्मा सकता है एक है कवर्धा की तो दूसरी है दुर्ग की बीते 21 जनवरी को कवर्धा में साधराम यादव की गला रेत कर हत्या की गई थी। मामले में अब तक 6 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। मामले में कार्यकर्ताओं ने NH-30 पर चक्काजाम किया, आरोपियों के एनकाउंटर की मांग की तो दूसरी तरफ दुर्ग में बिशप के साथ मारपीट के विरोध में मसीही समाज के सैंकड़ों लोगों ने IG ऑफिस का घेराव कर, FIR दर्ज नहीं होने पर नाराजगी जताई। इन दोनों घटनाओं पर विपक्ष का आरोप है कि मामले गंभीर हैं, प्रदेश के लॉ-एंड-ऑर्डर से जुड़े हैं सो इन पर सरकार को वक्त रहते एक्शन लेना चाहिए।
2023 विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ के मध्य क्षेत्र में की तकरीबन आधा दर्जन सीटों पर हिंदू सेंटिमेंट्स के आधार पर हुई वोटिंग से बड़े उलटफेर देखने को मिले हैं। मसलन अक्टूबर 2021 में हुए कवर्धा झंडाकांड से प्रदेश भर में सुर्खियों में आए बीजेपी प्रदेश महासचिव रहे विजय शर्मा को पार्टी ने कवर्धा सीट से प्रत्याशी बनाया। विजय शर्मा ने कांग्रेस सरकार के कद्दावर मंत्री रहे, मो अकबर के खिलाफ चुनाव लड़कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। इसी तरह 8 अप्रैल 2023 को बिरनपुर में 2 स्कूली छात्रों के बीच मामूली झगड़े से शुरू हुए विवाद में दो समुदायों के बीच हिंसा भड़की, जिसमें 23 वर्षीय भुवनेश्वर साहू की हत्या कर दी गई।
मामला शांत भी ना हुआ और 2 लोगों की हत्या हो गई। हिंसा कांड में मृतक भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में साजा सीट से कांग्रेस सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे रविन्द्र चौबे के खिलाफ उतार प्रचार के दौरान कवर्धा कांड और बिरनपुर कांड, धर्मांतरण, रोहिंग्या की बसाहट जैसे मुद्दों पर ऐग्रेसिव प्रचार किया गया। नतीजा तकरीबन आधा दर्जन सीटों पर तगड़े ध्रुवीकरण का असर दिखा। अब फिर चुनाव से पहले हिंसा, विरोध और प्रदर्शनों के सिलसिले पर कांग्रेस सत्ता पक्ष पर हमलावर है, तुरंत एक्शन लेने का दबाव बना रही है तो बीजेपी प्रदेश सरकार का दावा है कि ऐसी घटनाएं बर्दाश्त नहीं होंगी सब पर खुलकर एक्शन होगा।
अब सवाल ये है कि क्या धार्मिक और भावनात्मक मुद्दों पर माहौल गर्माए रखने का प्रयास हो रहा है।क्या एक बार फिर 2024 लोकसभा चुनाव में भी ध्रवीकरण के प्रयास हो रहे हैं, क्या एक बार फिर से इस आधार पर बने माहौल से किसी पक्ष को लाभ हो सकता है?