कौन हैं पंडी राम मंडावी? जिन्हें मिला है पद्मश्री सम्मान, 12 साल की उम्र में सीखा हुनर, गरीबी में बीता बचपन

 कौन हैं पंडी राम मंडावी? जिन्हें मिला है पद्मश्री सम्मान, 12 साल की उम्र में सीखा हुनर, गरीबी में बीता बचपन

राज्य ब्यूरो मोहम्मद आसिफ खान संपादक बीरेंद्र कुमार

 

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के रहने वाला पंडी राम मंडावी को पद्मश्री सम्मान से नवाज गया है। उन्होंने 12 साल की उम्र में यह कला सीखी थी। वह गोंड मुरिया जनजाति से आते हैं। पद्मश्री सम्मान मिलने पर सीएम विष्णुदेव साय ने उन्हें बधाई दी है। उन्होंने कहा कि यह पूरे छत्तीसगढ़ के लिए गौरव का क्षण है।

 

 

छत्तीसगढ़ के पंडी राम मंडावी को मिला पद्मश्री

राज्य के नारायणपुर के रहने वाले हैं पंडी राम मंडावी

सीएम विष्णुदेव साय ने दी बधाई

गोंड मुरिया जनजाति से आते हैं पंडी राम मंडावी

 

रायपुर: गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा की। पद्मश्री पुरस्कारों की लिस्ट में छत्तीसगढ़ से पंडी राम मंडावी का नाम भी शामिल है। वे नारायणपुर जिले के गोंड मुरिया जनजाति के जाने-माने कलाकार हैं। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने उन्हें बधाई दी है। पंडी राम मंडावी 68 वर्ष के हैं। वह गोंड मुरिया जनजाति से संबंधित हैं। वे पिछले पांच दशकों से बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को न केवल संरक्षित कर रहे हैं, बल्कि उसे नई पहचान भी दिला रहे हैं।

 

12 साल की उम्र में सीखी कला

उनकी विशेष पहचान बांस की बस्तर बांसुरी, जिसे ‘सुलुर’ कहा जाता है, के निर्माण में है। इसके अलावा, उन्होंने लकड़ी के पैनलों पर उभरे हुए चित्र, मूर्तियां और अन्य शिल्पकृतियों के माध्यम से अपनी कला को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया है। पंडी राम मंडावी ने मात्र 12 वर्ष की आयु में अपने पूर्वजों से यह कला सीखी और अपने समर्पण व कौशल के दम पर छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

 

 

उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन 8 से अधिक देशों में किया है। साथ ही, अपने कार्यशाला के जरिए एक हजार से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षण देकर इस परंपरा को नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का कार्य किया है। पंडी राम मंडावी का जीवन गरीबी में बीता है।

 

 

क्या कहा सीएम साय ने

सीएम विष्णुदेव साय ने कहा- नारायणपुर के गोंड मुरिया जनजातीय के सुप्रसिद्ध कलाकार पंडी राम मंडावी जी को पद्मश्री सम्मान के लिए चुना जाना छत्तीसगढ़ के लिए गर्व का क्षण है। यह प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें पारंपरिक वाद्ययंत्र निर्माण और लकड़ी की शिल्पकला के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाएगा। उन्होंने बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित कर अपने अद्वितीय कौशल से इसे नई पहचान दी है। साथ ही, उन्होंने अनेक कारीगरों को प्रशिक्षित कर इस परंपरा को नई पीढ़ियों तक पहुंचाया है। आपके सराहनीय कार्यों से समूचा छत्तीसगढ़ गर्व महसूस कर रहा है।