छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की टिप्पणी, नरम रुख अपनाने से गैंगरेप के दोषी किशोरों के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं
राज्य ब्यूरो मोहम्मद आसिफ खान संपादक बीरेंद्र कुमार चौधरी
हाईकोर्ट ने 24 वर्षीय युवक की रिहाई के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने कहा- यह समाज और कानून-व्यवस्था के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत बन गया है, इससे सख्त दिशा तय हुई।
बिलासपुर। डिवीजन बेंच ने कोंडागांव पाक्सो कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें दोषी को वयस्कों के लिए बनी जेल में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया था, उसकी आयु अब 21 वर्ष की सीमा पार कर चुकी है।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने सामूहिक बलात्कार के आरोपी एक 24 वर्षीय युवक की रिहाई के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे मामलों में नरम रुख अपनाने से इसी तरह के दोषी किशोरों के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं, जो समाज और कानून-व्यवस्था के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत बन गया है, जिससे ऐसे गंभीर मामलों में सख्त न्यायिक दिशा तय हुई है।
21 वर्ष के ऊपर हो गई उम्र
डिवीजन बेंच ने कोंडागांव पाक्सो कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें दोषी को वयस्कों के लिए बनी जेल में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया था, क्योंकि उसकी आयु अब 21 वर्ष की सीमा पार कर चुकी है।
सामूहिक दुष्कर्म के आरोपित ने ‘सकारात्मक सुधारात्मक प्रगति रिपोर्ट’ के आधार पर रिहाई की गुहार लगाते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। पाक्सो कोर्ट ने सामूहिक दुष्कर्म के आरोपित किशोर को वर्ष 2019 में आइपीसी 376 (डी) और पाक्सो अधिनियम की धाराओं के तहत दोषी पाते हुए 20 साल जेल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माना ठोंका था।
जुर्माने की राशि ना पटाने पर एक साल अतिरिक्त सजा भुगतने का निर्देश कोर्ट ने दिया था। पाक्सो कोर्ट ने उसे किशोर आश्रय गृह से सेंट्रल जेल में स्थानांतरित करने का आदेश दिए जाने के बाद दोषी ने ‘सकारात्मक सुधारात्मक प्रगति रिपोर्ट’ के आधार पर रिहाई के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
क्या है मामला
याचिकाकर्ता को पुलिस ने 19 जून 2017 को सामूहिक दुष्कर्म के आरोप में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (डी) और पाक्सो अधिनियम की धारा 4, 6 और 17 के अंतर्गत पांच वयस्क सह-आरोपितों के साथ गिरफ्तार किया गया था। याचिकाकर्ता की जन्म तिथि 4 अगस्त 1999 है और इस प्रकार याचिकाकर्ता अपराध की तिथि को 18 वर्ष से कम आयु का था।
लिहाजा, उसके साथ किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 के प्रावधानों के तहत व्यवहार किया गया, लेकिन अपराध की तिथि को 16 वर्ष से अधिक आयु होने और जघन्य अपराध करने का आरोप होने के कारण 2015 के अधिनियम की धारा 15(1) के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन किया गया और अगस्त सितंबर 2017 में किशोर न्याय बोर्ड नारायणपुर ने याचिकाकर्ता के मुकदमे को अधिनियम 2015 की धारा 18(3) के तहत पाक्सो न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया।
याचिकाकर्ता पर वयस्क के रूप में पाक्सो कोर्ट कोंडागांव द्वारा अधिनियम 2015 की धारा 19(1)(आइ) के तहत मुकदमा चलाया गया। याचिकाकर्ता को अन्य वयस्क सह-अभियुक्तों के साथ 20 दिसंबर 2019 के निर्णय द्वारा दोषी ठहराया गया।
कोर्ट ने जब फैसला सुनाया उस वक्त याचिकाकर्ता की आयु 19 वर्ष थी। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (डी) के साथ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 17 के तहत 20 साल की कैद और एक लाख रुपये का जुर्माना और इसके भुगतान न करने पर एक साल की अतिरिक्त कैद की सजा सुनाई गई है।
क्या है नियम
दोषसिद्ध होने पर याचिकाकर्ता को 20 दिसंबर 2019 के वारंट के जरिए जगदलपुर में सुरक्षित स्थान पर रखा गया था। वारंट में प्रावधान है कि याचिकाकर्ता को 21 वर्ष की आयु पूरी होने तक सुरक्षित स्थान पर हिरासत में रखा जाना चाहिए और उसके बाद याचिकाकर्ता का मामला 2015 के अधिनियम की धारा 20 के तहत जांच के लिए पाक्सो कोर्ट के समक्ष लाया जाना चाहिए। वारंट में आगे प्रावधान है कि हर साल याचिकाकर्ता की प्रगति रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए और पाक्सो कोर्ट को प्रस्तुत की जानी चाहिए।
परामर्श रिपोर्ट में यह सब बातें
29 नवंबर 2021 को विस्तृत परामर्श रिपोर्ट दाखिल की गई, तब याचिकाकर्ता की आयु 21 वर्ष हो गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि याचिकाकर्ता का सामान्य आचरण और सुरक्षा के स्थान पर प्रगति बहुत अच्छी है। याचिकाकर्ता जल्दी से दोस्त बनाने में सक्षम है और उसने संस्था के नियमों और विनियमों का पालन किया है और उसमें एक सकारात्मक बदलाव देखा गया है।
पेश रिपोर्ट में याचिकाकर्ता से हुई बातचीत के आधार पर लिखा है कि उसके तत्कालीन दोस्त जो उससे उम्र में बड़े थे, असामाजिक प्रवृति के थे और उस समय उसे इस बात की कोई समझ नहीं थी कि क्या गलत था और क्या सही था।
वर्तमान में उदास है क्योंकि वह अपने मामले को लेकर डरा हुआ है, यानी जेल में संभावित स्थानांतरण के कारण, वह अब 21 वर्ष का हो गया है। याचिकाकर्ता सो नहीं पा रहा है और उसे भूख भी नहीं लगती है। उसे पिछली घटना के बारे में पश्चाताप है।
पाक्सो कोर्ट में ऐसे चला मुकदमा
याचिकाकर्ता पर आरोप है कि 18 जून 2017 को दोपहर करीब दो से तीन बजे पांच अन्य सह-आरोपियतों के साथ मिलकर पीड़िता के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। तब उसकी उम्र 18 वर्ष से कम थी और इसलिए उस पर किशोर के रूप में पाक्सो कोर्ट में मुकदमा चलाया गया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एफटीसी) कोंडागांव के कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 376 (डी) और पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 17 के तहत दोषी ठहराते हुए 20 साल कारावास के साथ एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था।
कोर्ट ने जब फैसला सुनाया तब याचिककाकर्ता की आयु 21 साल पूरा हो गया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता जो अब 22 वर्ष का है, जेल में उसकी सजा का शेष भाग पूरा करने के लिए केंद्रीय जेल, जगदलपुर स्थानांतरित करने का आदेश दिया है।