ज्यादा पढ़ा दोगे तो दूल्हा कहां से लाओगे..?’ मजदूर की बेटी बनी दरोगा, ताने मारते रह गए लोग

 ज्यादा पढ़ा दोगे तो दूल्हा कहां से लाओगे..?’ मजदूर की बेटी बनी दरोगा, ताने मारते रह गए लोग

राज्य ब्यूरो मोहम्मद आसिफ खान संपादक बीरेंद्र कुमार चौधरी

 

समस्तीपुर की सीमा सिपाही से दरोगा बन गई हैं. उनके पिता मजदूरी करते हैं. सीमा के पिता बताते हैं जब मैं 200 रुपए की मजदूरी करके बेटी को पढ़ाता था तो लोग कहते थे कि ज्यादा पढ़ा दोगे तो दूल्हा कहां से लाओगे…पढ़े सीमा की सक्सेस स्टोरी.

 

 

पटना. बिहार के समस्तीपुर जिले की सीमा कुमारी ने यह साबित कर दिया कि यदि इंसान के अंदर सच्चा जुनून और अटूट संघर्ष हो, तो किसी भी बाधा को पार करना मुमकिन है. राज मिस्त्री का काम करने वाले पिता के साथ गरीबी से लड़ते हुए सीमा ने अपने सपनों को साकार किया और वह अपने गांव की पहली दरोगा बन गई.

सीमा की कहानी समाज के उन लोगों के लिए एक प्रेरणा है, जो आर्थिक तंगी के कारण अपने सपनों को त्यागने पर मजबूर होते हैं. उनके पिता ने महज 200 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी से अपनी बेटी को पढ़ाने का संकल्प लिया, जबकि समाज के लोग कहते थे, ‘ज्यादा पढ़ा दोगे तो पढ़ा-लिखा दूल्हा कहां से लाओगे?’ लेकिन सीमा के पिता ने इन बातों को नजरअंदाज किया और अपनी बेटी की पढ़ाई जारी रखी. आज उनके इसी विश्वास और मेहनत ने सीमा को दरोगा बना दिया है.

 

2021 में सीमा बनी थीं पुलिस कांस्टेबल

सीमा का सफर आसान नहीं था. 2021 में उन्होंने बिहार पुलिस में सिपाही के पद पर नौकरी की, लेकिन उनका लक्ष्य इससे कहीं ऊंचा था. ड्यूटी के बाद रात-रातभर पढ़ाई करना और दिन में काम करते वक्त किताबें साथ रखना, यह सीमा की दिनचर्या बन गई थी. पहली बार जब मेंस परीक्षा में उनका नाम मेरिट लिस्ट में नहीं आया, तो उन्हें दुख हुआ, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. संघर्ष और मेहनत के बल पर उन्होंने आखिरकार दरोगा बनने का सपना पूरा कर लिया.

 

पिता करते हैं राजमिस्त्री का काम

सीमा के पिता का योगदान इस कहानी में सबसे महत्वपूर्ण रहा. राज मिस्त्री का काम करते हुए वे अपनी बेटी की शिक्षा के लिए हरसंभव कोशिश करते रहे. जब लोग ताने कसते थे, तब भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उनके लिए सीमा की शिक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता थी. अपने सीमित संसाधनों में भी उन्होंने परिवार का भरण-पोषण किया और सीमा की पढ़ाई के लिए जरूरी इंतजाम किए.

 

सीमा के पिता बताते हैं, ‘लोग कहते थे कि ज्यादा पढ़ा दोगे तो दूल्हा कहां से लाओगे. लेकिन मैंने कभी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया. मेरी बेटी की मेहनत और लगन ने मुझे प्रेरित किया कि मैं उसकी पढ़ाई ना छुड़ाऊं’.

 

अब परिवार की जिम्मेदारी

सीमा अपने परिवार में सबसे बड़ी हैं और उन्होंने हमेशा से परिवार की जिम्मेदारियों को समझा है. गरीबी और संघर्ष से उठकर दरोगा बनने तक की यात्रा में उन्होंने न सिर्फ अपने सपनों को साकार किया, बल्कि अब वह अपने परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी भी निभाने के लिए तैयार हैं. उनके पिता का कहना है, ‘आज मेरा सपना पूरा हो गया. गांव की पहली दरोगा बन गई है मेरी बेटी. अब सीमा पूरे परिवार को संभाल लेगी’.

 

सीमा की यह कहानी सिर्फ एक लड़की के दरोगा बनने की नहीं है, बल्कि यह गरीबी के साथ लड़ी गई उस लड़ाई की है, जिसमें जुनून, मेहनत और आत्मविश्वास की जीत हुई है. उनका संघर्ष यह संदेश देता है कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, यदि हौसला और जज्बा मजबूत हो, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता.