मां काली नहीं हुई प्रकट.. शख्स ने खुद की दे दी बलि, कैंची से काटा गला
राज्य ब्यूरो मोहम्मद आसिफ खान संपादक बीरेंद्र कुमार चौधरी
रायपुर से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। धरसींवा के निनवा गांव में एक श्रद्धालु ने देवता के सामने ही अपनी गर्दन काटकर बलि दे दी। घटना से इलाके में सनसनी फैल गई है।
रायपुर ।आस्था और अंधविश्वास में बाल जितना बारीक फर्क है। निनवा गांव के भुनेश्वर यादव (55) ने इसी फर्क को नहीं समझा और अपनी जान गंवा दी। शनिवार सुबह अपनी कुलदेवी को खुश करने उसने खुद ही की बलि चढ़ा दी। बताते हैं कि 2022 में उसने पहली बार नवरात्रि पर ज्योत-जंवारा की स्थापना की थी। देवी को खुश करने के लिए उसने एक बकरा भी कटवाया था।
गांववाले बताते हैं कि इसके बाद से ही भुनेश्वर के व्यवहार में काफी बदलाव नजर आने लगे थे। वह लोगों से कहता था कि देवी अब भी नाखुश है। और बलि मांग रही है। घर में पत्नी के अलावा 2 बेटे और बहू भी साथ रहते थे। बेटे राजमिस्त्री हैं।
पत्नी और दोनों बहुएं भी काम करती हैं। शनिवार को सभी काम पर निकले। भुनेश्वर घर पर अकेला था। पत्नी काम से लौटी तो घर का दरवाजा बंद मिला। आसपास के लोगों को बुलाकर दरवाजा तोड़ा। अंदर देखा तो भुनेश्वर पूजाघर में खून लथपथ पड़ा था। उसका गला कटा हुआ था। हाथ में कैची थी।
नजारा देखकर भुलेश्वर की पत्नी चीख पड़ी। उसकी सांसें चल रही थीं। तड़पते हुए वह एक पल अपनी पत्नी को देखता, फिर देवी की ओर देखने लगता। मानो कुछ बताने की कोशिश कर रहा हो। इस बीच लोगों ने एंबुलेंस बुलवा ली। लेकिन, उसने एंबुलेंस में चढ़ने से पहले ही दम तोड़ दिया। सूचना मिलने पर सिलियारी पुलिस भी मौके पर पहुंची। पंचनामा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। परिजन और पड़ोसियों के बयान लिए जा रहे हैं।
पूजन सामग्री लाकर पूजाघर लीपा, खुद ही को कैची घोपी
मोहल्ले के लोगों ने बताया कि भुनेश्वर की दिमागी स्थिति पिछले कुछ समय से ठीक नहीं चल रही थी। शनिवार सुबह उसे दुकान जाते देखा था। घर लौटते वक्त उसके हाथों में पूजन सामग्री समेत कुछ और चीजें थीं। घटना के बाद घर पहुंचे लोगों ने बताया कि पूजा कमरे को देखकर लग रहा था कि कुछ देर पहले ही गोबर से लीपकर अच्छी तरह साफ-सुथरा किया गया हो।
वहीं भुनेश्वर के हाथ में बीड़ी बनाने वाली एक कैची थी, जिसे गले में घोपने से उसकी मौत हुई है। पूजाघर में चारों ओर खून फैला था। दिल दहला देने वाले इस मंजर को (CG Crime News) देखने वालों ने बाहर जाकर लोगों को समझाइश दी कि वे अंदर न जाएं। इधर, पुलिस ने भी मौके पर पहुंचकर घर व आसपास लगी भीड़ खाली कराई।
अंधविश्वास से बच्चे और कब्रें तक न छूटीं, आप भी जानें…
प्रदेश में अंधविश्वास का जाल आज भी इस कदर फैला है कि लोग सुख-शांति पाने के लिए बलि जैसी कुप्रथा पर पागलपन की हद तक भरोसा करते हैं। इसका नमूना इसी साल अप्रैल की चैत्र नवरात्रि में देखने मिला था, जब बलरामपुर में एक पिता ने अपने ही 4 साल के बच्चे की बलि दे दी थी।
पुलिस की पूछताछ में उसने बताया कि उसके कानों मे आवाज गूंजती थी, जो उससे बलि मांगती थी। इससे पहले की नवरात्रि में भी सरगुजा के शंकरगढ़ में एक व्यक्ति ने बैगा की इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उसके झाड़ फूंक से कोई फायदा नहीं हो रहा था। अंधविश्वास के चक्कर में हाल ही में गरियाबंद जिले में 3 महीने के भीतर 2 कब्रें खोदने का मामला भी सामने आया था।
अंधविश्वास में पड़कर व्यक्ति मानसिक रूप में असंतुलित हो जाता है। वह मिथकों पर भरोसा करने लगता है। कही-सुनी कहानियां और मान्यताएं उसे और भी भ्रमित करती हैं। ऐसे में वह खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचाता हैै। इस चक्कर में कई संगीन अपराध भी हुए हैं। जो लोग आत्माओं की आवाज सुनकर बलि मांगने जैसी बातें करते हैं, उन पर यकीन करने से पहले सोचिए कि किसी की जान लेकर कोई कैसे आबाद हो सकता है? उल्टे हत्या के जुर्म में भविष्य बर्बाद होना जरूर तय है। वैज्ञानिक और व्यवहारिक सोच अपनाएं।