झूठे मुकदमे के बढ़ते चलन को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने जताई चिंता

 झूठे मुकदमे के बढ़ते चलन को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने जताई चिंता

राज्य ब्यूरो मोहम्मद आसिफ खान संपादक बीरेंद्र कुमार चौधरी

 

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा- राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ने के साथ इस प्रवृत्ति में लगातार वृद्धि के मिल रहे संकेत

 

बिलासपुर। अग्रिम जमानत को लेकर दायर एक मामले की सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मौजूदा परिवेश में झूठे मुकदमेबाजी के बढ़ते चलन को लेकर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि, हाल के दिनों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ने के साथ इस प्रवृत्ति में लगातार वृद्धि के संकेत मिल रहे हैं। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ याचिकाकर्ता महिला की अग्रिम जमानत आवेदन को स्वीकार करते हुए सशर्त जमानत दे दी है।

 

मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी के सिंगल बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने झूठे मामले में फंसाने और पुलिस में झूठी रिपोर्ट लिखाने की बढ़ती प्रवृति पर चिंता के साथ ही नाराजगी भी जताई है। कोर्ट ने यह भी कहा कि, यही कारण है कि नए कानून में अग्रिम जमानत देने के मामले में जरुरी प्रावधान के साथ ही न्यायालय को और अधिक अधिकार सम्पन्न बनाया गया है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि अग्रिम जमानत देने की जरूरत मुख्य रूप से इसलिए पड़ती है, क्योंकि कभी-कभी प्रभावशाली व्यक्ति अपने प्रतिद्वंद्वियों को बदनाम करने या अन्य उद्देश्यों के लिए उन्हें कुछ दिनों के लिए जेल में बंद करवाकर झूठे मामले में फंसाने की कोशिश करते हैं।

 

जमानत के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं

 

कोर्ट ने यह भी कहा कि, झूठे मामलों के अलावा जहां यह मानने के लिए उचित आधार है कि किसी अपराध के आरोपित व्यक्ति के फरार होने या जमानत पर रहते हुए अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने की संभावना नहीं है, वहां उसे पहले हिरासत में लेने, फिर कुछ दिनों के लिए जेल में रहने और फिर जमानत के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।

 

क्या है मामला

 

राजनादगांव निवासी अभिषेक त्रिवेदी, आवेदिका परीशा त्रिवेदी का पति है और दुबई (यूएई) में रहता है। आशीष स्वरूप शुक्ला जो इस मामले में आवेदक क्रमांक दो हैं, परीशा त्रिवेदी के चाचा हैं। 04 जुलाई 2016 को परीशा त्रिवेदी अपने चाचा आशीष स्वरूप शुक्ला के साथ अपने पति के पैतृक घर राजनांदगांव गई थीं। जहां उनके पति के भाई दुर्गेश त्रिवेदी के साथ कुछ तीखी बातचीत हुई। उस समय दुर्गेश त्रिवेदी कुछ सामान लेकर बाहर आया, जो परीशा त्रिवेदी का था। आवेदिक ने यह कहा कि उसने गलती से एक मोबाइल उठा लिया जो शिकायतकर्ता दुर्गेश त्रिवेदी का था। परीशा ने बताया कि तुरंत ही ई-मेल भेजकर बताया कि उन्होंने गलती से एक मोबाइल फोन उठा लिया है, जो दिखने में एक जैसा है और वे उसे वापस करना चाहते हैं, लेकिन उक्त मुद्दे को अनावश्यक रूप से विवाद का स्रोत बना दिया गया है। यह भी बताया गया कि रिपोर्ट दर्ज होने के बाद 14 दिसंबर 2017 को पुलिस द्वारा क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई थी। परीशा और उनके चाचा के वकील ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता परीशा त्रिवेदी अपने पति अभिषेक त्रिवेदी के घर गई थी और घर की बहू होने के नाते उसे अपने पति के घर जाने का अधिकार है। याचिकाकर्ता के तर्कों का विरोध करते हुए शिकायतकर्ता और राज्य शासन के अधिवक्ता ने जमानत देने का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने आज तक मोबाइल वापस नहीं किया गया है। हैंडसेट में सिम बदलकर साक्ष्यों से छेड़छाड़ की जा रही है। लिहाजा याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत की हकदार नहीं हैं।