देश का पहला बायोमार्कर किट: छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिकों ने बनाया कोविड-19 की गंभीरता का अनुमान लगाने वाला उपकरण

 देश का पहला बायोमार्कर किट: छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिकों ने बनाया कोविड-19 की गंभीरता का अनुमान लगाने वाला उपकरण

राज्य ब्यूरो मोहम्मद आसिफ खान संपादक बीरेंद्र कुमार चौधरी

यह रिसर्च कोविड-19 की पहली लहर के दौरान शुरू किया गया था और इसके परिणाम हाल ही में साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। इस किट को भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट के लिए भी आवेदन किया गया है। मुख्य वैज्ञानिक डॉ जगन्नाथ पाल और उनकी टीम ने इस किट को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस शोध में डॉ योगिता राजपूत ने भी अहम योगदान दिया।

इस किट से डॉक्टर यह तय कर सकेंगे कि मरीज को अस्पताल में भर्ती करना आवश्यक है या नहीं

 

 

नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिकों ने चिकित्सा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। डॉ भीमराव अंबेडकर अस्पताल, रायपुर की मल्टी-डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) के वैज्ञानिकों ने देश का पहला बायोमार्कर किट विकसित किया है, जो कोविड-19 संक्रमण की गंभीरता का प्रारंभिक चरण में ही सटीक अनुमान लगाने में सक्षम है। इस किट की मदद से डॉक्टर यह तय कर सकेंगे कि मरीज को अस्पताल में भर्ती करना आवश्यक है या वह केवल दवाइयों के माध्यम से घर पर ही ठीक हो सकता है। साथ ही, यह किट यह भी बता सकती है कि मरीज को किस प्रकार की दवाइयों की जरूरत होगी, जिससे इलाज को और अधिक प्रभावी और सुरक्षित बनाया जा सकेगा।

 

पेटेंट के लिए किया गया है आवेदन

यह रिसर्च कोविड-19 की पहली लहर के दौरान शुरू किया गया था और इसके परिणाम हाल ही में साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। इस किट को भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट के लिए भी आवेदन किया गया है। मुख्य वैज्ञानिक डॉ जगन्नाथ पाल और उनकी टीम ने इस किट को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डॉ पाल ने बताया कि कोविड महामारी के दौरान यह समझना बेहद कठिन था कि किन मरीजों को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत है और किन्हें घर पर ही इलाज दिया जा सकता है।

बेहतरीन है सक्सेस रेट

इसी चुनौती को देखते हुए यह बायोमार्कर किट विकसित की गई, जो क्यू पीसीआर (क्वांटिटिव पीसीआर) आधारित परीक्षण पर आधारित है और 91% संवेदनशीलता और 94% विशेषता के साथ सटीक परिणाम प्रदान करती है। इस शोध में एमआरयू की वैज्ञानिक डॉ योगिता राजपूत ने भी अहम योगदान दिया।