साहू-कुर्मी की सियासत में बनते बिगड़ते हैं समीकरण, दुर्ग लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प

 साहू-कुर्मी की सियासत में बनते बिगड़ते हैं समीकरण, दुर्ग लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प

राज्य ब्यूरो मोहम्मद आसिफ खान संपादक बीरेंद्र कुमार चौधरी

 

 

 

दुर्ग: राजधानी के नजदीक होने से शिवनाथ नदी के तट पर बसा दुर्ग लोकसभा राजनीतिक पार्टियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह कुर्मी, यादव और साहू समाज की बहुलता वाला क्षेत्र है। ऐसे में जो पिछले चुनाव हुए हैं, उसमें दोनों ही बड़े राजनीतिक दलों ने टिकट की लंबी दौड़ में शामिल कई दिग्गजों की टिकट काटते हुए जातिगत समीकरण बैठाने की कोशिश की है। इससे राजनीतिक दलों को फायदा भी हुआ है। यहां साहू समाज 30 से 35, कुर्मी समाज 20-22 प्रतिशत, यादव समाज 12-15 प्रतिशत, सतनामी समाज 20-22 प्रतिशत हैं। ऐसे में यादव और सतनामी समाज मिलकर कई बार लोगों के अनुमानों को गलत साबित कर देते हैं। किसी भी समाज को नाराज करना राजनीतिक दलों के लिए बड़ी भूल हो सकती है।

 

चुनाव मैदान में साहू- कुर्मी मुकाबला बनाते हैं दिलचस्प

दुर्ग लोकसभा क्षेत्र में इस बार दोनों ही राजनीतिक दलों ने साहू- कुर्मी को मैदान में उतारकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। ऐसे में प्रदेश की हाट लोकसभा सीटों में शुमार दुर्ग में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई की स्थिति है। यहां भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल का मुकाबला कांग्रेस के राजेंद्र साहू से है।

 

विजय बघेल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भतीजे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही उम्मीदवार कुर्मी समाज से थे। भाजपा के विजय बघेल और कांग्रेस से प्रतिमा चंद्राकर की बीच कड़ी टक्कर हुई थी। हालांकि, मतदाताओं ने विजय पर भरोसा जताया था। कांग्रेस की प्रतिमा चंद्राकर को करीब चार लाख वोटों से हराया था। वर्ष-2014 के चुनाव में कांग्रेस की वापसी हुई थी।

 

 

मोदी लहर में भाजपा दिग्गज को मिली पटखनी

 

वर्ष-2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू, भाजपा की कद्दावर नेता सरोज पाण्डेय को पटखनी देकर सांसद बने थे। कांग्रेस ने जिले के जातिगत समीकरणों के आधार पर ताम्रध्वज साहू को टिकट देते हुए भाजपा के 30 वर्षों के गढ़ को भेदते हुए जीत दर्ज की थी।

 

राज्य गठन के बाद तीन बार भाजपा का कब्जा

दुर्ग लोकसभा सामान्य सीट है। यहां देश की आजादी से लेकर अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं। अविभाजित मध्य प्रदेश में वर्ष-1952 से 1999 के समय मध्य प्रदेश के बिलासपुर संभाग का निर्वाचन क्षेत्र था। वर्ष-2000 में राज्य बनने के बाद वर्ष-2004 से 2019 तक चार बार चुनाव हुआ है। दुर्ग लोकसभा सीट पर तीन बार भाजपा तो एक बार कांग्रेस ने कब्जा जमाया है। शुरुआती समय में दुर्ग कांग्रेस का गढ़ रहा था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने धाक जमाई है।

 

वर्ष-1952 से 1971 तक यहां कांग्रेस का दबदबा रहा। वर्ष-1977 में जनता पार्टी ने चुनाव जीता था, फिर वर्ष-1980 में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। वर्ष-1989 में जनता दल के उम्मीदवार ने यहां से चुनाव जीता, फिर 1991 में कांग्रेस ने यहां से जीत हासिल की। इसके बाद वर्ष-1996 से 2009 तक भाजपा ने कब्जा जमाए रखा। वर्ष-2014 में एक बार फिर कांग्रेस की वापसी हुई। वर्ष-2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां जीत का परचम लहराया।

 

चाचा-भतीजे में हुई कड़ी टक्कर

विधानसभा चुनाव-2023 में चाचा भूपेश बघेल के खिलाफ पाटन विधानसभा क्षेत्र से भतीजे विजय बघेल ने चुनाव लड़ा था। दोनों नेताओं के बीच कड़ी टक्कर देखने के लिए मिली थी। हालांकि इसमें भूपेश बघेल ने बाजी मारी थी, लेकिन विजय बघेल पाटन में भूपेश बघेल को घेरने में कामयाब जरूर हो गए थे।

 

क्षेत्र का चुनावी गणित

 

61.21 प्रतिशत वोट मिले थे भाजपा को पिछली बार

32.96 प्रतिशत वोट मिले थे कांग्रेस को पिछली बार

3.91 लाख वोट से जीते थे भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल

20,90,414 मतदाता इस बार लोकसभा चुनाव में करेंगे मतदान

10,42,000 पुरुष तथा 10,48,360 महिला मतदाताओं की संख्या

47 प्रतिशत शहरी तथा 53 प्रतिशत ग्रामीण आबादी दुर्ग में